कालसर्प दोष पूजा का प्रभाव तब और बढ़ जाता है जब इसे शुभ मुहूर्त में किया जाता है। 2025 में नाग पंचमी, महाशिवरात्रि, अमावस्या, और श्रावण मास जैसे अवसर इस पूजा के लिए आदर्श हैं। सही समय पर पूजा करने से न केवल दोष का प्रभाव कम होता है, बल्कि जीवन में आर्थिक स्थिरता, करियर में प्रगति, और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। कालसर्प दोष की पूजा यदि सही समय और शुभ मुहूर्त में की जाए तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
कौन सा दिन सबसे उत्तम होता है कालसर्प दोष पूजा के लिए?
वैदिक ज्योतिष और पुराणों के अनुसार, सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता है। कालसर्प दोष की पूजा में शिवजी और नागदेव की विशेष पूजा होती है, इसलिए सोमवार का दिन पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
नाग पंचमी: सर्प देवता को समर्पित पवित्र दिन
नाग पंचमी, जो 2025 में अगस्त में पड़ेगी, यह दिन उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। इस दिन सर्प देवता की पूजा की जाती है, और राहु-केतु के प्रभाव को शांत करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। 2025 में नाग पंचमी 30 जुलाई को पड़ने की संभावना है। इस दिन सुबह 6:00 बजे से 9:00 बजे तक का समय पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
- नाग पंचमी का दिन विशेष फलदायी होता है क्योंकि यह नागों की आराधना का विशेष पर्व है।
- शनिवार को भी पूजा कराना उत्तम माना गया है, विशेषकर यदि राहु-केतु की स्थिति अशुभ हो।
कौन से महीने में कालसर्प दोष पूजा कराना देता है विशेष फल?
हर माह में कालसर्प दोष पूजा कराई जा सकती है, लेकिन कुछ विशिष्ट माहों में यह पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है:
श्रावण मास: भगवान शिव का पवित्र महीना
श्रावण मास (जुलाई-अगस्त 2025) भगवान शिव को समर्पित है और इस दौरान कालसर्प दोष पूजा का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। विशेष रूप से श्रावण मास की सोमवारी (सोमवार) पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। 2025 में श्रावण मास 22 जुलाई से शुरू होगा, और इस दौरान प्रत्येक सोमवार को भगवान की पूजा की जाती है। सावन महीने में किए गए पूजन से राहु-केतु शांत होते हैं और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगता है।
अमावस्या, ग्रहण और राहुकाल – क्यों माने जाते हैं कालसर्प दोष पूजा के लिए गुप्त और असरदार समय?
कालसर्प दोष पूजा एक विशेष तांत्रिक और वैदिक विधि होती है। प्रत्येक माह की अमावस्या कालसर्प दोष पूजा के लिए शुभ मानी जाती है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा और सूर्य एक ही राशि में होते हैं, जो ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को शांत करने में मदद करता है।कुछ ऐसे समय माने गए हैं जब ब्रह्मांडीय ऊर्जा विशेष रूप से सक्रिय होती है:
अमावस्या तिथि – जब चंद्रमा नहीं दिखाई देता और रहस्यमयी ऊर्जा सक्रिय होती है।
ग्रहण काल – विशेषत: चंद्र और सूर्य ग्रहण के समय की गई पूजा तीव्र फलदायी मानी जाती है।
उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा के लिए समय निर्धारण कैसे होता है?
हमारे माध्यम से जब आप उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा कराते हैं, तो हम निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाते हैं:
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- जन्म तिथि और समय के अनुसार शुभ मुहूर्त निर्धारण
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कालसर्प दोष पूजा की विधि क्या है?
कालसर्प दोष पूजा एक जटिल अनुष्ठान है, जिसे शुभ मुहूर्त में करना आवश्यक है। यहाँ पूजा की सामान्य प्रक्रिया दी गई है:
- संकल्प: पूजा की शुरुआत शुभ मुहूर्त में संकल्प से होती है, जिसमें पूजा का उद्देश्य स्पष्ट किया जाता है।
- गणेश पूजा: सभी बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
- नवग्रह पूजा: सभी ग्रहों की शांति के लिए मंत्र जाप और पूजन किया जाता है।
- राहु-केतु मंत्र जाप: राहु और केतु को शांत करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है, जो शुभ मुहूर्त में अधिक प्रभावी होता है।
- हवन और विसर्जन: पूजा के अंत में हवन किया जाता है, और सामग्री को पवित्र नदी में विसर्जित किया जाता है।
पूजा का समय क्यों महत्वपूर्ण है? वैदिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, ग्रहों की स्थिति और नक्षत्रों का संयोग पूजा के प्रभाव को निर्धारित करता है। कालसर्प दोष पूजा का समय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि:
- ग्रहों की शांति: शुभ मुहूर्त में पूजा करने से राहु और केतु की नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित करना आसान होता है।
- आध्यात्मिक ऊर्जा: विशेष तिथियों जैसे नाग पंचमी और महा शिवरात्रि पर आध्यात्मिक ऊर्जा अपने चरम पर होती है, जो पूजा को अधिक प्रभावशाली बनाती है।
- वैदिक मंत्रों का प्रभाव: शुभ मुहूर्त में किए गए मंत्र जाप और हवन का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
- मन की शुद्धता: सही समय पर पूजा करने से मन और आत्मा में सकारात्मकता और शांति का संचार होता है।
उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा कैसे बुक करें?
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